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खंड-21 / पढ़ें प्रतिदिन कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा

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आकर विद्वज्जन यहाँ, सुना गये कुछ छन्द।
अमिट छाप इस हृदय पर, छोड़ गये कवि चन्द।।
छोड़ गये कवि चन्द, मंच सबका आभारी।
धन्यवाद श्रीमान्, करें अग्रिम तैयारी।।
होगी सुखमय नीन्द, शयन का कक्ष सजाकर।
किया आपने धन्य, मंच पर कविगण आकर।।

मंगल शुभ यदि चाहते, बस इतना रख ध्यान।
मातृचरण पूजो सतत, पितु का कर सम्मान।।
पितु का कर सम्मान, मातु ही देवी माता।
उसको जो दे कष्ट, नर्क में वह है जाता।।
मिले न उसको शान्ति, साथ में प्रतिपल दंगल।
मातु-पिता का ध्यान, रखे जो पाता मंगल।।

साजन ने भेजा अभी, सजनी को जब पत्र।
एक सखी है पढ़ रही, बैठी थी वह यत्र।।
बैठी थी वह यत्र, बाग में बाँच रही है।
लेती है आनन्द, भाव भी जाँच रही है।।
सुखमय अन्तिम वाक्य, लिखा हैअति मनभावन।
सजनी आज प्रसन्न, शीघ्र आएंगे साजन।।
 
करना है यदि प्रेम तो, करें कृष्ण से प्रेम।
जो करते निज भक्त का, सदा योग अरु क्षेम।।
सदा योग अरु क्षेम, कर्म बन्धन भी छूटे।
जग से जो आसक्त, भाग्य हैं उनके फ़ूटे।।
नश्वर है संसार, दम्भ इस पर क्या भरना।
चिर शाश्वत हैं एक, प्रेम बस प्रभु से करना।।
 
सावन मनभावन हुआ, पड़ती देख फुहार।
काँवरिये सब चल पड़े, करते जय जयकार।।
करते जय जयकार, बोल हैं बमबम भोले।
जाते हैं शिवधाम, भंग के खाकर गोले।।
शिव दर्शन हो प्राप्त, हृदय होगा तब पावन।
शिवमय है संसार, प्रमाणित करता सावन।।
 
 
राधे को जपते रहें, कृष्ण रहेंगे पास।
कृष्ण मिलन सम्भाव्य है, मत हों आप उदास।।
मत हों आप उदास, वही हैं अन्तर्यामी।
करें समर्पित कर्म, मात्र रह प्रभु पथगामी।
प्रथम सिखाकर योग, श्वास की गति को साधे।
उसको मिलते कृष्ण, जपे जो प्रतिपल राधे।।
 
बेटा एसी में रहे, वृद्धाश्रम में बाप।
क्यों है ऐसा हो रहा, कह सकते हैं आप?
कह सकते हैं आप, जिसे सह कष्ट पढ़ाया।
सुविधा के सामान, सदा हर भाँति जुटाया।।
जब पितु हो लाचार, कब्र में पाँव समेटा।
निर्वासन में डाल, भगा देता है बेटा।।
 
पाकर मानव योनि क्यों, भूल गया इन्सान।
क्यों है ऐसा हो रहा, बन जाता हैवान।।
बन जाता हैवान, अनर्गल क्यों है करता।
करता सतत कुकर्म, दम्भ उसपर भी भरता।।
उत्तर प्रभु के पास, कहेगा क्या वह जाकर।
नहीं किया निज धर्म, जन्म मानव का पाकर।।
  
इठलाती यह नायिका, दिखती है उन्मत्त।
आकर नायक त्वरित अब, कर दे इसको पस्त।।
कर दे इसको पस्त, जवानी जब मदमाती।
आलिंगन में बद्ध, हुई फिर खुश हो जाती।
कामदेव की मार, बदन में अग्नि लगाती।
प्रेम नीर की चाह, रखे जो वह इठलाती।।
 
सावन है जबसे चढ़ा, तबसे हूँ बीमार।
कम्पन देकर तीव्र ज्वर, आता बारम्बार।।
आता बारम्बार, नहीं होता है यह कम।
है अब जिनपर आस, बचाएँ हर हर बम बम।
मैं भी करता ध्यान, मास है शिव का पावन।
मुझपर ज्वर अतिसार, लिए क्यों आया सावन?