खंड-2 / पढ़ें प्रतिदिन कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा
होती है मतभिन्नता, जब अपनों के बीच।
लगा युक्ति दें स्नेह को, प्रेम वारि से सींच।।
प्रेम वारि से सींच, प्रेम है असली पूंजी।
होने मत दें न्यून, हाथ में रखिए कुंजी।।
कह “बाबा” कविराय, यही है जीवन मोती।
यह दौलत हो पास, शान्ति फिर मन में होती।।
सुख में तेरी शुक्रिया, दुख में कर फ़रियाद।
हर हालत मेंआपको, करता हूँ प्रभु याद।।
करता हूँ प्रभु याद, आप ही मेरे रक्षक।
जग के प्रायः लोग, स्वार्थ में बनते भक्षक।।
कह”बाबा”कविराय, साथ देता न दुःख में।
बनते मित्र अनेक, देख लें कैसे सुख में।।
नीरज जी का हो गया, आज दुखद अवसान।
शोकाकुल हो रो रहा, पूरा हिन्दुस्तान।
पूरा हिन्दुस्तान, नमन उनको है करता।
अमर रहें कवि श्रेष्ठ, यही जन-जन है कहता।।
कह “बाबा” कविराय, रखूँ कैसे अब धीरज।
श्रद्धांजलि के पुष्प, आपको अर्पित नीरज।।
आती है विपदा कभी मैं लेता हूँ चूम।
स्वागत करता हूँ सदा, मन जाता है झूम।।
मन जाता है झूम, कटेगी शाम सुनहरी।
क्यों हो पश्चाताप, संगिनी यह जो ठहरी।।
कह “बाबा” कविराय, इसे कुछ लाज न आती।
एकमात्र यह संग, निभाने प्रायः आती।।
कहिए पतझड़ के बिना, आता कभी वसंत?
कठिनाई संघर्ष से, दुख का होता अंत।।
दुख का होता अंत, नियति का चक्र यही है।
सुख-दुख सम दिनरात, बात यह बंधु सही है।
कह “बाबा” कविराय, दुखों को सहते रहिए।
करें सतत संघर्ष, दर्द न किसी से कहिए।।
मिलता है बिल्कुल नहीं, जिस घर में सम्मान।
उस घर में जाता नहीं, कोई भी इंसान।।
कोई भी इंसान, वहाँ से दूर रहेगा।
अपना हो अपमान, नहीं वह सहन करेगा।।
कह “बाबा” कविराय, स्नेह से हृदय पिघलता।
हरदम जाते लोग, प्रेम जिस घर में मिलता।।
ईश्वर के ही रूप में, होते हैं माँ-बाप।
ध्यान रहे देना नहीं, इन्हें कभी संताप।।
इन्हें कभी संताप, अन्यथा पाप लगेगा।
जो है एक कपूत, सदा वह कष्ट सहेगा।
कह”बाबा”कविराय, शेष यह जग है नश्वर।
मातु-पिता हैं पूज्य, मात्र हैं वे ही ईश्वर।।
आकर लहरें चूमतीं, जैसे सबके पैर।
कैसे कह दूँ है उसे, फिर नावों से बैर।।
फिर नावों से बैर, दिखाकर निज विनम्रता।
देती हैं संकेत, करो मत अधिक धृष्टता।।
करती है चैलेंज, नाव अंदर जब जाकर।
लहरें होतीं क्रुद्ध, कहे मत छेड़ो आकर।।
चलने की गति मन्द हो, नहीं करें परवाह।
मंजिल तक चलते रहें, लोग कहेंगे वाह।।
लोग कहेंगे वाह, लक्ष्य जब पूर्ण दीखता।
देंगे सब दृष्टान्त, आपसे अन्य सीखता।।
देख आपका काम, लोग कुछ लगते जलने।
शेष देख वह मार्ग, उसी पर लगते चलने।।
रखते हैं प्रिय आप भी, छंदशास्त्र का ज्ञान।
इसीलिए हैं जानते, सारे छंद विधान।।
सारे छंद विधान, आपसे अन्य सीखता।
रखते हैं सम भाव, साम्य सर्वत्र दीखता।।
जिन्हें नहीं है ज्ञान, वही हैं हरदम झखते।
जाते उनके पास, विद्वता जो हैं रखते।।