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खंड-6 / पढ़ें प्रतिदिन कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा

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यह आत्मा तो है अमर, अक्षय शाश्वत धीर।
जीर्ण वस्त्र सा यह सदा, बदले नवल शरीर।।
बदले नवल शरीर, कर्म जो जैसा करता।
बार-बार ले जन्म, योनि अनुरूप भटकता।
कह”बाबा” कविराय, रहे तटस्थ परमात्मा।
ईश्वर का ही रूप, जानिए है यह आत्मा।।
 
माया अति बलवान है, सब इसके आधीन।
त्रिगुण फाँस ले हँस रही, करके सबको लीन।।
करके सबको लीन, वही सब नाच नचाती।
काम क्रोध मद लोभ, दिलाकर नित्य फँसाती।
कह “बाबा” कविराय, कहाँ कोई बच पाया।
मायापति को छोड़, शेष को ठगती माया।।
 
 
पलती है मन में कभी, किसी वस्तु की चाह।
उसको पाने के लिए, जगता तुरत कुभाव।।
जगता तुरत कुभाव, विघ्न से आहत होता।
फिर होता सम्मोह, तुरत विवेक वह खोता।
कह”बाबा”कविराय, क्रोध की आँधी चलती।
करता सत्यानाश, घृणित इच्छा जब पलती।।
 
 
सारे इन्द्रिय कर्म में, लगा रहे दिनरैन।
सदा कृष्ण की याद में, हृदय रहे बेचैन।।
हृदय रहे बेचैन, जगत है ठगिनी माया।
बिना कृष्ण की भक्ति, उसे है जीत न पाया।
कह “बाबा” कविराय, भटकते सब बेचारे।
जग में रह आसक्त, कीट सम जीते सारे।।
 
अटल बिहारी हो गये, चिरनिद्रा में लीन।
आता है हर जीव ही, बनकर कालाधीन।।
बनकर कालाधीन, कहो क्या वह मरता है।
जीवन का उत्सर्ग, देशहित जो करता है।।
जो करता सत्कर्म, जीतता दुनिया सारी।
पूजे उसको विश्व, बने जो अटल बिहारी।।

बन्दर को हम जानते, हनुमत का ही रूप।
उच्छृंखल होता मगर, प्रभु का रूप अनूप।।
प्रभु का रूप अनूप, बहुत होती चंचलता।
कर सकता सब काम, नहीं खोजें निश्छलता।।
करे काम अति शीघ्र, शक्ति व्यापक है अन्दर।
है उपयोगी जीव, हमारा प्यारा बन्दर।।

होता है बन्दर बहुत, ज्ञानी ज्यों हनुमान।
अतुलित बल होता इसे, लें हम सब यह जान।।
लें हम सब यह जान, नहीं यह क्या कर सकता।
उछलकूद है काम, छलांगें भी भर सकता।।
चंचलता के साथ, धैर्यं यह प्रायः खोता।
वैकासिक सिद्धान्त, पूर्व यह नर का होता।।
 
बन्दर लेकर कैमरा, खींच रहा है चित्र।
इसे देख आती हँसी, है यह बात विचित्र।।
है यह बात विचित्र, कहाँ से ज्ञान चुराया।
मानव से तरकीब, सीखकर बानर लाया।।
मिले आपका चित्र, झाँककर देखें अन्दर।ः
लेकर अद्भुत रूप, हँसाता है यह बन्दर।।

माता की सेवा करो, जिनसे हो उत्पन्न।
जितना संभव हो करो, होओगे सम्पन्न।।
होओगे सम्पन्न, वही है सब तीर्थाटन।
होगा भारी पाप, करे जब माँ भिक्षाटन।
कह “बाबा” कविराय, उसे क्या विश्व सुहाता।
सुखी रहे संतान, सदा यह चाहे माता।।
 
हे माता कात्यायनी, दूर करो अज्ञान।
करता है पूजन सदा, यह बालक नादान।।
यह बालक नादान, तुम्हारा अंक मिलेगा।
पाकर ही आशीष, ज्ञान का पुष्प खिलेगा।।
 मैं हूँ एक अनाथ, मात्र तुम हो भय त्राता।
हो जाए कल्याण, प्रार्थना है हे माता।।