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खंड-6 / बाबा की कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा

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जनता तो अभिशप्त है, बनकर भोली गाय।
दूह रही सरकार ही, करके विविध उपाय।।
करके विविध उपाय, सदा जनता बेचारी।
सह लेती हर त्रास, समझ अपनी लाचारी।
कह ‘बाबा’ कविराय, कहानी जो भी सुनता।
करता है वह व्यंग्य, विवश हो सहती जनता।।

गीता से हम सीखते, कर्मयोग का ज्ञान।
कर्मभूमि में सर्वदा, हो जीना आसान।।
हो जीना आसान, हमेशा युद्ध करेंगे।
जीवन है संग्राम, कृष्ण संताप हरेंगे।
कह ‘बाबा’ कविराय, उसी ने जग को जीता।
लेकर प्रभु का नाम, पढ़़ेगा जो भी गीता।।

तेरा मेरा भेद ही, कर देता आसक्त।
भेद भुला सब एक हैं, बनकर प्रभु का भक्त।।
बनकर प्रभु का भक्त, तभी फिर साम्य सिखेगा।
कण-कण में भगवान, यही सर्वत्र दिखेगा।
कह ‘बाबा’ कविराय, जगत है एक बसेरा।
नश्वर है संसार, करो मत तेरा मेरा।।
 
ऐसा मैंने क्या कहा, हुए आप जो क्रुद्ध।
अच्छी तरह विचारिए, होकर आप प्रबुद्ध।
होकर आप प्रबुद्ध, किसी को पहले सुनिए।
फिर होकर गंभीर, सोचकर निर्णय चुनिए।
कह ‘बाबा’ कविराय, नहीं है तेरे जैसा।
आप परम प्रिय मित्र, करें व्यवहार न ऐसा।।

खुद को समझो श्रेष्ठतम, फिर कर उचित विचार।
मन पवित्र रख कर्म कर, बहुत सुलभ संसार।।
बहुत सुलभ संसार, असंभव कुछ न रहेगा।
मिले चरम उत्कर्ष, नहीं दुख-दर्द सहेगा।
कह ‘बाबा’ कविराय, प्रतिष्ठा दे जग तुझको।
पाकर अति सम्मान, धन्य कह देगा खुद को।।

बेटी को निज उदर से, जो माँ करती दूर।
बालघातिनी पूतना, सी होती वह क्रूर।।
सी होती वह क्रूर, कहो वह कैसी माता।
दे बेटी को मार, कहाँ से साहस आता।
कह ‘बाबा’ कविराय, रहे सद्भाव समेटी।
बढ़ जाता धनधान्य, जहाँ हो घर में बेटी।।

रहता है जो सर्वदा, दुखिया बन अति दीन।
कर्मठता रखता नहीं, कहे भाग्य का हीन।।
कहे भाग्य का हीन, कर्म से भाग्य बनेगा।
करो सदा सत्कर्म, भाग्य का पुष्प खिलेगा।
कह ‘बाबा’ कविराय, दीन बन सब दुख सहता।
उद्यम बिन बेकार, सदा जो बैठा रहता।।

बहरा जब है नाचता, होता अपना ताल।
रहता है जो व्यर्थ ही, व्यस्त तथा बेहाल।।
व्यस्त तथा बेहाल, कभी कुछ काम न करता।
करे दिखावा मात्र, व्यस्तता का दम भरता।
कह ‘बाबा’ कविराय,देख वह स्वप्न सुनहरा।
रहता खुद में मस्त, लोग सब समझे बहरा।।

अपने लोगों के बने, जबसे अलग मकान।
अभ्यागत बन रह गई, अब सबकी पहचान।।
अब सबकी पहचान, बचा है मात्र दिखावा।
रहे स्वजन से दूर, नहीं कोई पछतावा।
कह ‘बाबा’ कविराय, लगे अब अपने सपने।
अपनापन से दूर, हुए हैं सारे अपने।।
 
इतना है सबको पता, होते हैं दिन-रैन।
उसी तरह सुखदुख मिले, क्यों होते बेचैन।।
क्यों होते बेचैन, रात बीते दिन होता।
मिट जाएगा कष्ट, कहो वह क्यों है रोता।
कह ‘बाबा’ कविराय, धैर्य रखता जो जितना।
उतना ही आनन्द, मिले मत सोचो इतना।।