खंड-8 / बाबा की कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा
धन बल पद पर मत करें, इतना अधिक घमंड।
नष्ट हुए इतिहास में, कितने वीर प्रचंड।।
कितने वीर प्रचंड, जरा इतिहास पलट लो।
तेरी क्या औकात, इसे तुम जाँच परख लो।
कह ‘बाबा’ कविराय, नहीं कुछ जाता संबल।
मद से होता नष्ट, सभी ये भौतिक धन बल।।
जाना है जब एकदिन, सबको प्रभु के पास।
कर प्रयास कैसे मिले, प्रभु का दृढ़ विश्वास।।
प्रभु का दृढ़ विश्वास, समर्पण से मिलता है।
कीचड़ में भी फूल, सदा देखो खिलता है।
कह ‘बाबा’ कविराय, परम पद चाहो पाना।
कर्तापन अभिमान, त्याग कर ही है जाना।।
जबतक मन में खोट हो, और हृदय में पाप।
तबतक करना व्यर्थ है, यज्ञ योग तप जाप।।
यज्ञ योग तप जाप, व्यर्थ सब हरदम होते।
जो करते हों ढोंग, दुखी हो वे सब रोते।
कह ‘बाबा’ कविराय, कृष्ण सुनते हैं तबतक।
रहे न मन में चोर, हृदय हो निर्मल जबतक।।
जीवन काँटों का सफर, साहस को पहचान।
जो चलकर पथ दे बना, वही सफल इंसान।।
वही सफल इंसान, स्वयं जो भाग्य बनाता।
करता है संघर्ष, नहीं है जो घबड़ाता।
कह ‘बाबा’ कविराय, बचा है जबतक यौवन।
कठिनाई को झेल, सफल तुम कर लो जीवन।।
चंदन कंचन ईख को, बदल न सकती आग।
विपदाएँ आती रहे, निज गुण को मत त्याग।।
निज गुण को मत त्याग, गुणों को अधिक बढ़ाओ।
जितना हो संताप, सहो फिर चमक दिखाओ।
कह ‘बाबा’ कविराय, करो दुख में मत क्रन्दन।
फैला मधुर सुगंध, आग में जैसे चंदन।।
मेरे कारण हो नहीं, जग में कोई रुष्ट।
रखना मैं हूँ चाहता,सबको ही संतुष्ट।।
सबको ही संतुष्ट, नहीं यह संभव होता।
बढ़ती जाती चाह, बीज नफरत का बोता।
कह ‘बाबा’ कविराय, जीत लूँ मन को तेरे।
कह दो सहज उपाय, अगर बन सकते मेरे।।
मिलता है यह फायदा, चलकर सच्ची राह।
भीड़भाड़ बिल्कुल नहीं, चलता बेपरवाह।।
चलता बेपरवाह, सत्य की राह निराली।
इक्के-दुक्के छोड़, मिलेंगी राहें खाली।
कह ‘बाबा’ कविराय, कमल कीचड़ में खिलता।
बढ़ जाता उत्साह, प्रतिद्वंद्वी जब मिलता।।
होता मैं विचलित नहीं, यद्यपि हूँ बीमार।
लिखता हूँ हर हाल में, मैं हूँ रचनाकार।।
मैं हूँ रचनाकार, हमेशा रचना करता।
हालत हो प्रतिकूल, नहीं मैं उससे डरता
कह ‘बाबा’ कविराय, चैन से तब ही सोता।
बन जाते कुछ छंद, यही प्रायः है होता।।
हिन्दी भाषा श्रेष्ठतम, संस्कृत से निष्पन्न।
अब मत होने दीजिए, इसको आप विपन्न।।
इसको आप विपन्न, बढ़े भारत की गरिमा।
विकसित होगा राष्ट्र, जगत फिर गाए महिमा।
कह ‘बाबा’ कविराय, बने माथे की बिन्दी।
सब मिल दें सम्मान, तभी चमकेगी हिन्दी।।
आसन प्राणायाम से, करते रहिए योग।
जीवन का रस लीजिए, रहकर आप निरोग।।
रहकर आप निरोग, बनाएँ सुन्दर काया।
जीवन होता धन्य, इसे जिसने अपनाया।
कह ‘बाबा’ कविराय, भले कम खा लें राशन।
प्रतिदिन प्राणायाम, संग हो थोड़ा आसन।।