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खंभों पर सूरज हैं बने हुए / कुमार रवींद्र

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सोने की चौकी है
         रेशमी चँदोवा है
खंभों पर सूरज हैं बने हुए
    शहजादे बैठे हैं तने हुए
 
ऊँचे आकाशों तक
गुंबज की चोटी है
मीनारें उजली हैं
परछाईं छोटी है
 
दूधिया हवेली में
   कीचड़ से हाथ सभी सने हुए
 
सारे गलियारों में
जगह-जगह पहरे हैं
हत्यारे छिपे हुए
तहखाने गहरे हैं
 
गद्दी की उलत-पलट
    देख रहे अँधियारे घने हुए