Last modified on 13 फ़रवरी 2020, at 23:49

खजूर और अशोक वृक्ष / हरेराम बाजपेयी 'आश'

घर में बड़ी होती लड़की
खजूर सी नजर आती है
और गैर कमाऊ पूत
अशोक वृक्ष सा।

दोनों ही
अरमानो के सहारे, आकाश चूमते है,
घर कि दीवारों और स्वम्भी का मन
चिंताओं से ग्रस्त रहता है
जब ये हवा में इधर उधर झूमते है
खजूर, बहू उपयोगी है
वह जानते हुए भी
उसे देहरी के अन्दर उगा नहीं सकते
और अशोक
देहरी के बाहर
सिर्फ शोभा बड़ा सकता है,
किन्तु उससे कुछ पा नहीं सकते
खजूर और अशोक वृक्ष॥