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खड़े-खड़े आँख लग गई / शी लिज़ी / सौरभ राय

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मेरे आँखों के सामने रखा कागज़
फीका पड़ रहा है
लोहे की क़लम से जिस पर उकेर रहा हूँ मैं
मेहनतकश शब्द
कारख़ाना, असेम्बली लाइन, मशीन, ओवरटाइम, तनख़्वाह

इन्होंने सिखाया है मुझे ग़ुलाम बने रहना
मैं नहीं जानता चीख़ क्या, बग़ावत क्या
शिकायत, आरोप-प्रत्यारोप क्या
बस चुप्पी साधे सहना जानता हूँ

जब पहली बार यहाँ आया
हर महीने की दस तारीख़ की उम्मीद में
देर से ही सही, तसल्ली की तरह तनख़्वाह मिलती थी

इस उम्मीद के लिए मैंने किनारों का, शब्दों का साथ छोड़ा
आराम ठुकराया, बीमारियाँ ठुकराईं, छुट्टियाँ ठुकराईं
देर से जाना, जल्दी लौटना ठुकराया
असेम्बली लाइन के सामने लोहे की तरह खड़ा रहा,
हाथ जैसे किसी उड़ान में तने हुए
कितने दिन, और कितनी रातें
मैं – बस यूँ ही – खड़े खड़े सोया?

मूल चीनी भाषा से अनुवाद : सौरभ राय