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खड़े रहने को / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
अब तक सम्बन्धों के
अनटूटे
अन छूटे
ठाँव!
पल भर को जीते हैं
वैसा जो रहा नहीं
एक बहुत प्यारा-सा नाम!
आओ न ऽ
बैठो न ऽ
ओ लौटे तरु पाखी
दूरी से दूरी तक
मत छोड़ो पंखों के दाँव
कुछ साँसें
उपहासें
सारा संकल्पन जो-
कंधो ने वहा नहीं
सहा नहीं आँखों ने बाँव।
चला किए
भला किए
चलने जो नहीं
खड़े रहने को चल आए
वे ही चेहराये हैं पाँव।