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खण्डहर-से दिल में फिर कोई तमन्ना घर बनाती है / मुनव्वर राना
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खण्डहर-से दिल में फिर कोई तमन्ना घर बनाती है
मेरे कमरे में इक नन्ही-सी चिड़िया घर बनाती है
मुक़द्दर के लिखे को लड़कियाँ बिल्कुल नहीं पढ़तीं
वो देखो रेत पर बैठी वि गुड़िया घर बनाती है
किसी की बेघरी मंज़ूर होती तो महक होता
उधर देखो मेरे छप्पर में चिड़िया घर बनाती है
निगल लेती है लड़कों को बड़े शहरों की रंगीनी
न जाने किस तमना में ये बुढ़िया घर बनाती है
जला कर राख कर देती है एक लम्हे में शहरों को
सियासत बस्तियों को रोज़ कूड़ाघर बनाती है
चलो इम्दाद करना सीख लें हम भी हुकूमत से
ये पक्का घर गिरा देती है कच्चा घर बनाते है
नहीं सुनता है मेरी तो मेरे बच्चों की ही सुन ले
ये वो मौसम है जब चिड़िया भी अपना घर बनाती है