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खण्डोबा की जय हो / दिलीप चित्रे

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पीली ज़र्द हल्दी के अम्बार में से
कितने अजीर्ण ही लग रहे हो
उस तरफ़ के तुम सब

इस हवा में मैं खड़ा हूँ
दूल्हे की तरह
इन्तज़ार में जर्जर

स्वप्न में से जगा
स्वप्न की ओर देखता
घण्टा बजते-बजते।


अनुवाद : चन्द्रकांत देवताले