खण्ड-12 / यहाँ कौन भयभीत है / दीनानाथ सुमित्र
221
नित घर लाता माल है, मेरा बालम चोर।
फिर भी मन भरता नही, दिल यह माँगे मोर।।
222
पेट भरा जब आपका, माथ भरी है घास।
तो बोलो मैं आपसे, क्या रक्खूँगा आस।।
223
जिसके उर में है भरा, नारी हित सम्मान।
वही देवता संत हैं, उत्तम पुरुष महान।।
224
पंगु-जनों को पाँव दो, नेत्रहीन को नैन।
बे अक्लों को अक्ल दो, दो गूंगों को बैन।।
225
चंदन लाल ललाट पर, तुलसी माला कंठ।
संत बोलते इस तरह, जैसे बोले लंठ।।
226
जल का भी अभिषेक हो, या जल से अभिषेक।
जो भी हो लेकिन सदा, लक्ष्य बनाएँ नेक।।
227
मंदिर में भगवान हैं, मस्जिद में अल्लाह।
जाकर उनसे पूछ लो, कब मिटनी है आह।।
228
खुशी मना बेटी हुई, आई गंगाद्वार।
युगों-युगों से वंश का, यही करे उद्धार।।
229
रक्खो इसे सँभाल कर, ज्ञान एक उपहार।
मूल्यवान केवल यही, बाकी सब बेकार।।
230
कवि का धर्म निभाइए, करिए धर्म प्रचार।
नर में ही भगवान है, करिए जमकर प्यार।।
231
मुट्ठी में आकाश रख, दिल में रखो जमीन।
तुम-सा मीठा कौन है, खट्टा या नमकीन।।
232
महाभक्त की जय कहो, इनकी भक्ति महान।
दौड़ रहे इस बात पर, काग ले गया कान।।
233
बाबा तुलसी तुम बड़े, ये मानस के हंस।
इस कलियुग में पढ़ रहे, सिर्फ तुम्हें अब कंश।।
234
सरयू तट पर है खड़ा, व्याकुल मेरा राम।
क्यों सारा साकेत यह, लूट रहा विश्राम।।
235
टूटे दिल को जोड़ना, दिल रेशम की डोर।
गुम आदम ढूँढू कहाँ, अनगिन आदमखोर।।
236
होनी ही हो कर रही, क्या है मेरे हाथ।
हत्या करवाते रहो, हत्यारा है साथ।।
237
जिसका खाली पेट है, जिसकी नंगी देह।
उस पर बरसाने चलो, आज नेह का मेह।।
238
राज चलाता वह नहीं, जिसका हिन्दुस्तान।
राज चलाता है वही, जो जाहिल शैतान।।
239
मूर्खों के इस देश में, हम हैं बी. ए. पास।
लेकिन हम भी छीलते, रहते हैं बस घास।।
240
जिसका लोटा है भरा, वह रहता खामोश।
जिसका लोटा रिक्त है, वह रहता बेहोश।।