खण्ड-13 / सवा लाख की बाँसुरी / दीनानाथ सुमित्र
241
काम मिले हर हाथ को, मरे न कहीं किसान।
तब कहना होगा सही, जय-जय हिन्दुस्तान।।
242
बच्चों में भगवान हैं, बच्चों में इंसान।
इनको छूता है नहीं, पाप, झूठ अभिमान।।
243
बाल प्रेम ही प्रेम है, ममता का आधार।
बाल रूप में है निहित, प्रगति और विस्तार।।
244
बचपन चीज अमोल है, इसका कहीं न जोड़।
यह संध्या गंभीर है, यह है नटखट भोर।।
245
सभी मुझे अपने लगे, यहाँ पराया कौन?
इस कारण ही आजतक, धड़कन हुई न मौन।।
246
इतने सारे फूल हैं, पता न सबके नाम।
सभी फूल हैं देवता, सबको करूँ सलाम।।
247
जीवन है ज्यों एक क्षण, पर कितना विस्तार।
तरह-तरह के रंग हैं, सबसे करिये प्यार।।
248
अपराधी यह देश है, पल-पल ही अपराध।
लाशें बिछतीं जा रहीं, खंजर चले अबाध।।
249
सत्ता सब दिन से रही, जनता के विपरीत।
जनता सिर्फ़ कराहती, सत्ता गाये गीत।।
250
त्याग-तपस्या खो गये, लगा भोग का रोग।
हर जन की चाहत यही, मिलता जाये भोग।।
251
तिलक, लाल औ पाल को, करे न कोई याद।
बापू के इस देश में, सब ही हैं उस्ताद।।
252
झगड़े में डूबी हुई, जनता है बेहोश।
जाने कब होगा प्रकट, इस जनता का रोष।।
253
मंत्री का बेटा हुआ, राजनीति में पास।
पार्टी में आते हुआ, सब नेता में खास।।
254
दारोगा जी जानते, किसका देना साथ।
धनी देव पकड़े अगर, कौन भरेगा हाथ।।
255
खोई है संवेदना, सहिष्णुता लाचार।
पंथ देख करने लगी, राजनीति व्यवहार।।
256
कोयल तेरे गान को, कौन करे स्वीकार।
कौए का दरबार है, कौए की सरकार।।
257
देना है तो दीजिए, खड़ा पसारे हाथ।
आगे मर्जी आपकी, रीता दीनानाथ।।
258
दोहे कहो कबीर-से, लिए लुकाठी हाथ।
पीछे-पीछे आयगी, दुनिया तेरे साथ।।
259
सिंहासन से दूर हैं, हम मजदूर किसान।
चाहे हँसता इंडिया, रोता हिन्दुस्तान।।
260
बदनसीब इंसान वो, जो बन गया किसान।
उसकी किस्मत को लिखे, सरकारी भगवान।।