खण्ड-17 / यहाँ कौन भयभीत है / दीनानाथ सुमित्र
321
समय मिले तो सोचिए, क्यों ऐसा संसार।
कहीं सुखों का ढेर है, कहीं पीर भरमार।।
322
वोट माँगने आ गया, हिटलर की औलाद।
इसे वोट देगा वही, जो मन से जल्लाद।।
323
बतलाता हूँ आपको, कौन यहाँ गद्दार।
जिसके माथा भूस है, रखता कुत्ता द्वार।।
324
सच कहने को बाध्य है, बाबा दीनानाथ।
खुला-खुला मस्तिष्क है, खुले-खुले हैं हाथ।।
325
दो पल में दोहा कहूँ, दो पल में दूँ गीत।
बहा रहा हूँ जन्म से, कल-कल गंगा प्रीत।।
326
औरत होते तो पता, चलता तुमको यार।
सभी दर्द इसके लिए, रचता है संसार।।
327
बेटी लगती फूल सी, यह खुशबू की खान।
इसमें बसती आ रही, सकल जहाँ की जान।।
328
वामाचारी वह नहीं, जो पीते है भंग।
वामाचारी जगत में, है समता के संग।।
329
सब के हिस्से फूल हों, सबके हिस्से गान।
सबके हिस्से नृत्य हो, नाचे हिन्दुस्तान।।
330
लूटनहारा मस्त है, रहा हर तरह लूट।
बंदूके हैं, फौज है, किये जा रहा शूट।।
331
आधे मत देते नहीं, आधे ऊल जलूल।
प्रजातंत्र में रोज ही, होती रहती भूल।।
332
प्रजातंत्र की रोज ही, हिल-हिल जाती चूल।
साधु नहीं चुनते कभी, मतदाता की भूल।
333
सत्ता करती चाकरी, धनपतियों की रोज।
इसे चाहिए भोग का, ‘पंच मकारी’ भोज।।
334
राम भरोसे चल रहे, हैं भारत के काम।
मिलती है इमली हमें, जब भी माँगा आम।।
335
सेवक को है सूझता, केवल पाकिस्तान।
बना दिया है देश को, पूरा पापिस्तान।।
336
राजनीति से शून्य हम, माथे में है भूस।
सदा माँगते घूस हम, देते रहते घूस।।
337
मरने भी देता नहीं, जीना किया हराम।
सजना-सजनी भज रहे, मिलकर सीताराम।।
338
दारू पी कर मुफ्त की, करते रहना बात।
चूयेगा छप्पर पुनः, आने दो बरसात।।
339
स्वारथ की सरकार हो, नेता बोले झूठ।
विपदा आयेगी बड़ी, नहीं बचेगा ठूँठ।।
340
चोरों का वह गाँव है, वहाँ सभी हैं चोर।
सभी नाचते गा रहे, मेरा मन है मोर।।