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खण्ड-1 / मन्दोदरी / आभा पूर्वे

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आय तोंय ने छोॅ
तेॅ ई लंका
केन्होॅ सुनशान
वीरान बनी गेलोॅ छै;
सरंग छूतें हजारों हजार हवेली में
जेना कोय आदमिये ने रहेॅ।

सोना के राजमार्ग
सोना के रास्ता
सोना के घाट
सोना के सीढ़ी
सोना के बन्दनवार
सब बेकार
करिया अन्हार;
जेना
ऊ महावली के जलैलोॅ लंका
हठासिये जागी उठलोॅ रहेॅ
जेकरा तोहें
राते-रात पहले नाँखि गढ़वाय देलेॅ छेलौ।
आय वही
सोना के लंका
फेनू केन्होॅ कारोॅ करिया
बनी गेलोॅ छै ।

सरंगोॅ केॅ छूतें
हमरोॅ ई राजहवेली
आइयो होने केॅ छै
वहाँ रं हजार-हजार परिचारिका
राज हवेली के बाहरो
हमरोॅ आदेश पावै लेॅ
बेकल,
हजारों-हजार सेविका
कहीं कोय कमी नै
कमी छै
तेॅ एक बस तोरे
जेकरा बिना की लंका
की शृंगार
सौंसे जिनगिये भार ।

स्वर्ण मंजूषा में ढकी केॅ
तोरोॅ वहा चट्टान नाँखि देह
आबेॅ चट्टान के नीचें
राखी देलोॅ गेलोॅ छै
कोय कालमात्रा नाँखि,
जेकरा आबेॅ
नै देखेॅ पारतै
कोय देवता
कोय दानव
कोय दैत्य
कोय असुर
कोय आर्य
सबसें अलग
शान्त चित्त नाँखि
अदृश्य काल नाँखि
तोहें सुती गेलोॅ छोॅ
पर्वत के हृदय में
हेनोॅ कि
कालो वहाँ तक
ने पावेॅ पारेॅ
केकरो कल्पनो तांय
नै पहुँचेॅ पारेॅ।
तबेॅ
ई मन्दोदरिये के पहुँच
केना हुएॅ पारतै वहाँ तांय !

कत्तो चाही केॅ
कुछ नै करेॅ पारौं
बस यही हुएॅ पारेॅ
कि हम्में हुमड़तें रहौं
तोरा लेॅ, जिनगी भरी
जिनगी के बादो
-दूसरोॅ जिनगी
तेसरोॅ-चौथोॅ जिनगी तांय ।