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खण्ड-2 / यहाँ कौन भयभीत है / दीनानाथ सुमित्र

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21
नदियों का रोको रुदन, दो जंगल को त्राण।
कहीं लील जाये नहीं, मानव को निर्माण।।

22
कटवाना है शीश को, रह कर सच के साथ।
यहाँ कौन भय भीत है, अशि है तेरे हाथ।।

23
रे जम्बूरा बोल तू, इन साहब का काम।
इनका एकहि काम है, ख़ुद होना बदनाम।।

24
दो पैसे की चाकरी, का करता अभिमान।
हिम्मत है तो विश्व को, दे प्रेमिल मुस्कान।।

25
झूठ बोलना पाप था, चोरी करना पाप।
मगर सत्य पथ ही हुआ, अब जग में अभिशाप।।

26
क्यों अतीत से खेलना, वर्तमान विकराल।
शक्ति अमित अर्जित करो, बन जाओ जगलाल।।

27
मरुथल होगा देश यह, पढ़ा गलत यदि मंत्र।
जाति-धर्म से है बड़ा, यह अपना जनतंत्र।।

28
डोर स्नेह की रेशमी, दो कोमल स्पर्श।
हृदय स्वयं आ जायगा, पूर्ण सृष्टि का हर्ष।।

29
रूप सभी को चाहिए, अमृत कुंभ समान।
इसी कुंभ को चाहते, कोटि-कोटि भगवान।।

30
सारा जीवन जानिए, सात सुरों का खेल।
याद रहे इसमें नहीं, होता कुछ बेमेल।।

31
सिर्फ गीत-संगीत ही, जीवन हित वरदान।
इसी संपदा से हुआ, है इंसान महान।।

32
जो परिचित भगवान के, भक्त उसी का नाम।
भक्त नहीं वह जो करे, क्रोध, घृणा का काम।।

33
झूठों के सरदार का, आज बढ़ा है मान।
झूठे उनको मानते, साधु-संत-भगवान।।

34
पशु पूजा करते नहीं, पंछी पढ़े न मंत्र।
पद पूजा के वास्ते, खड़ा आज जनतंत्र।।

35
हम जीते फुटपाथ पर, हम निर्धन लाचार।
सोचो कैसी गढ़ रहे, आखिर हम सरकार।।

36
जाति-धर्म के जाप से, होगा सत्यानाश।
बँट जायेगा देखना, धरती सँग आकाश।।

37
मिट जायेगा देखना, जग से भ्रष्टाचार।
एक बार जो एक हो, हम देंगे ललकार।।

38
यह चुनाव सिखला रहा, जाति-धर्म का पाठ।
नयन खोल कर देख लो, हो मानव या काठ।।

39
मची हुई है देश में, भीषण चीख-पुकार।
ऊपर मुखड़ा संत का, चोरों-सा किरदार।।

40
निश्चित मेरी जीत है, होगी तेरी हार।
झूठ पराजित ही हुआ, सच्चा यह संसार।।