खण्ड-2 / सवा लाख की बाँसुरी / दीनानाथ सुमित्र
21
जिसकी जैसी सोच है, वैसा लिखता लेख।
पीत पात लगता हरा, हरे चश्म से देख।।
22
रश्मिरथी के कर्ण का, गाता रहा चरित्र।
इसीलिए मरता नहीं, दीनानाथ सुमित्र।।
23
पढी नहीं कामायिनी, जाना नहीं प्रसाद।
मां हिन्दी व्याकुल हुई, मन पर पड़ा विषाद।।
24
नानक ने सच-सच कहा, सच कह गया कबीर।
ईश्वर मानव हृद बसा, खोज उसे रख धीर।।
25
करते रहो प्रयास तुम, लक्ष्य बनेगा कंत।
सकते अम्बर चीर तुम, कहता है दुष्यंत।।
26
आँसू लिखे प्रसाद जी, दिखी प्रेम की पीर।
मिलन, विरह दोनों दिखे, ज्यों नदिया के तीर।।
27
नीरज की पाती करे, बारंबार पुकार।
प्रिया लौट आ पास अब, हृद में ज्वाल अपार।।
28
आकुल अंतर गा रहा, बच्चन जी के गीत।
आओ तुम्हें पुकारता, यह तेरा मनमीत।।
29
निशा निमंत्रण के लिए, आज जगाओ गीत।
संध्या जीवन का हुआ, जब खोया मनमीत।।
30
अगर अँधेरी रात हो, लो झट दीपक बार।
जीवन में नव प्रेम से, हरो घिरा अँधियार।।
31
मधुशाला सबके लिए, चाहे कोई धर्म।
एक रक्त अरु प्यास भी, समझो इतना मर्म।।
32
गीतों की खेती करो, पाया हिन्दुस्तान।
गीत भरो तुम प्रेम के, दो जग को अवदान।।
33
अभिलाषा है पुष्प की, सैनिक पग तल वास।
वीर पगों की धूल में, भर वह सके सुवास।।
34
बादल जब घिरते दिखा, जागा कवि का गान।
युग-युग तक होगा नहीं, ऐसा गीत महान।।
35
इन्दू जी को याद कर, लिखा राष्ट्र संदेश।
कवि सूरज जैसा तपे, अद्भुत है आवेश।।
36
रहा इलाहाबाद को, याद शिला पर चोट।
सुनकर अब तक यह हृदय, जाता सहज कचोट।।
37
वर दे वीणावादिनी, कवियों का अभिमान।
करे मात की वंदना, राष्ट्र-धर्म का ज्ञान।।
38
प्रकृति प्रेम में डूबकर, बना प्रकृति का कंत।
और दूसरा कब हुआ, जैसा था प्रिय पंत।।
39
मैं गायक हूँ पीर का, मैं जीवन का गीत।
मैं हूँ बाबा भारती, नहीं सकोगे जीत।।
40
दर्द, घुटन, आँसू, विरह, अगर न होते मित्र।
तो फिर कवि होता नहीं, दीनानाथ सुमित्र।।