खण्ड-4 / यहाँ कौन भयभीत है / दीनानाथ सुमित्र
61
रुपयों की खेती हुई, खाली हैं खलिहान।
सेठ, सेठ से भी बड़े, कृषक सिर्फ हलकान।।
62
आँसू की गंगा बही, रोया बहुत सुमित्र।
देह पसीना भोगती, अंबर छूटे इत्र।।
63
समझदार समझा नहीं, समझ-समझ की बात।।
क्या समझा था बुद्ध ने, क्या समझा सुकरात।।
64
जो पाया सब खो दिया, मिला न जी को चैन।
ढूँढ रहे हैं चैन को, मेरे ये दो नैन।।
65
कौन हरेगा बोलिये, दुखी जनों की पीर।
सबकी गंदी देह है, सबका गंदा चीर।।
66
बड़ी रैलियाँ बंद हों, बंद करो पाखंड।
जनता न्यायाधीश बन, दो कठोरतम दंड।।
67
जनता के हिस्से रहा, सिर्फ एक मतदान।
नेता भी सुनते नहीं, सुनता कब भगवान।।
68
नेता हाकिम लूट से, बनते धन्ना सेठ।
जनता वर्षों से रही, सिर्फ ठेठ की ठेठ।।
69
पशु-पंछी जन से भले, रहते बिन बंदूक।
संग्रह से भी दूर हैं, पास नहीं संदूक।।
70
जनता बस लुटती रही, जनता है कमजोर।
राज जिसे अब तक दिया, सब के सब थे चोर।।
71
जिसके घर में चोर है, उसके घर आनंद।
दुनिया भर की संपदा, रहती घर में बंद।।
72
सच कोने में है पड़ा, मिथ्या संग कतार।
जाने कैसा हो गया, यह अपना संसार।।
73
सिले लबों को खोल कर, सच का करो बखान।
तब जाकर होगा सही, अपना हिन्दुस्तान।।
74
तेरे दिल जो आग है, मेरे दिल वह आग।
आग अगर मिल जाय तो, आयेगा फिर फाग।।
75
सुनते-सुनते थक गए, अब कर भाषण बंद।
बिना सोच की चीज यह, आती नहीं पसंद।।
76
जनता जिये अभाव में, नेता मारे मौज।
उसके पीछे चल रही, आज सुखों की फौज।।
77
बेटी दिखा बहादुरी, रोना है बेकार।
साथ तुम्हारे देखना, होगा यह संसार।।
78
उषा किरण सा-तू बिखर, भू के सँग आकाश।
जो है प्यासे ज्योति के, मिटा सभी की प्यास।।
79
तू चंदन वन की पवन, तुझमें सुरभि अपार।
वह सुरभित हो जायगा, जो भी तेरा यार।।
80
जाओ संसद साजना, रखना कठिन सवाल।
तुम ही बदलोगे पिया, राजनीति की चाल।।