खण्ड-5 / सवा लाख की बाँसुरी / दीनानाथ सुमित्र
81
दीपों से जगमग करो, सब अपने घर-द्वार।
चीनी बल्बों को नहीं, घर लाना तुम यार।।
82
कृषक देश की शान हैं, कृषक देश के प्राण।
कृषकों से ही चल रहा, अपना हिंदुस्तान।।
83
नित्य सवेरे जागते, करते काम किसान।
कर्म-लगन से बाँटते, जग को जीवन दान।।
84
भोजन जो उपजा रहे, वही आज बदहाल।
जो कुछ भी होता नफा, खाते उसे दलाल।।
85
सूली पर हैं चढ़ रहे, कृषक भूख से हार।
समझ नहीं आता मुझे, क्यों चुप है सरकार।।
86
अपने हिंदुस्तान में, कृषक हुए मजबूर।
सबके पालनहार ही, हैं सुविधा से दूर।।
87
सूखा हो या बाढ़ हो, मरता सिर्फ़ किसान।
नेता-अफसर बाँटते, मिला हुआ अनुदान।।
88
किया कृषक ने कर्म से, धरती का श्रृंगार।
यूँ ही कहते हम नहीं, इनको पालनहार।।
89
बारंबार तुम्हें नमन, जग के पालनहार।
कृषकों के बिन चल नहीं, सकता यह संसार।।
90
फागुन आया प्रीत ले, कहलाया मधुमास।
मधुवन, वृन्दावन सभी, आए मेरे पास।।
91
फागुन के इस रंग में, गंध, प्रेम, रस, रूप।
खुशियाँ लेकर आ गया, यह माहों का भूप।।
92
हँसी, ठिठोली, गुदगुदी, प्यार और मनुहार।
फागुन लेकर आ गया, आँगन भर त्योहार।।
93
शब्द-शब्द हैं गढ़ रहे, जैसे सुंदर छंद।
गोरी की पायल बजे, बजते बाजूबंद।।
94
देख तुम्हारे नैन दो, मन में जागे प्यार।
गोरी तुम तो स्वयं हो, फागुन का त्यौहार।।
95
आँगन मेरे बोलता, बार-बार ही काग।
खुशियाँ लेकर आयगा, लगता है यह फाग।।
96
नव वासंतिक धूप में, आलस हुआ विलीन।
गोते मन खाने लगा, बन सागर की मीन।।
97
आया है मधुमास ये, लेकर नूतन आस।
नई कोंपलों में जगा, नया प्रेम आभास।।
98
केशर फूले बाग में, कण-कण जागे बौर।
खुशियाँ लेकर आ गया, ऋतुओं का सिरमौर।।
99
तन टेसू के पेड़-सा, मन सरसों के फूल।
हँसी, ठिठोली, गुदगुदी, मौसम के अनुकूल।।
100
सिंदूरी जंगल हुआ, कनक कुंज खलिहान।
रात ऋचाएँ बाँचती, कलरव गीत विहान।।