खण्ड-8 / यहाँ कौन भयभीत है / दीनानाथ सुमित्र
141
बहुत मौन यह हो चुका, अब कुछ मन में ठान।
टूटेगी अट्टालिका, बन जा तू तूफान।।
142
काम आयगा एक दिन, एक-एक बलिदान।
समता से रँग जायगा, पूरा हिंदुस्तान।।
143
धन की चिंता मत करो, मन की करो अपार।
धन से उड़ती नींद तक, मन से मिलता प्यार।।
144
चलनी में पानी भरा, घट का करके त्याग।
मूरख यह संसार है, कैसे आये फाग।।
145
जात-पात को देखकर, जो करता मतदान।
कैसे मैं उसको कहूँ, पढ़ा-लिखा इंसान।।
146
आत्म-सुरक्षा के लिए, तड़पे हिन्दुस्तान।
राम-नाम रटते नहीं, रटते पाकिस्तान।।
147
देशभक्त उनको कहें, जिनके सँग ईमान।
काम सदा सच का करें, दें सबको सम्मान।।
148
जाना है हमको नहीं, सात समंदर पार।
काबा, काशी, द्वारिका, सब इस मन के द्वार।।
149
चार दिनों की जिंदगी, रख इसमें विश्वास।
देख प्यार से ये धरा, औ प्यारा आकाश।।
150
जाति-धर्म के भेद को, करना होगा साफ।
वरना यह माँ भारती, नहीं करेगी माफ।।
151
शांति-शांति करते नहीं, जो होते कमजोर।
सभी जानते झूठ ही, खूब मचाता शोर।।
152
रुको नहीं पल भर कभी, करते जाओ काम।
मरने से पहले नहीं, मिलता है आराम।।
153
आना-जाना सत्य है, रुकना कहाँ मुकाम।
रे पंछी तू गाय जा, ले कर अपना नाम।।
154
सुख ढूँढ़ो मिल जायगा, वह रहता दुख धाम।
चंदन कर लो आत्मा, चंदन कर लो चाम।।
155
धर्म सिखाता है नहीं, कभी घृणा की बात।
पर धर्मी ही कर रहे, क्यों उर पर आघात।।
156
कोटि-कोटि जब व्यय हुए, सभा हुईं संपन्न।
कोटि जनों के सामने, आज समस्या अन्न।।
157
आगे है चोटी खड़ी, चढ़ो हमारे साथ।
शीश झुकाये मत रहो, प्यारे दीनानाथ।।
158
राजा जी मत चीखिए, भले न लागें बोल।
वादे पूरे कीजिए, रखिए इनका मोल।।
159
राजा बदले ढेर से, बदला नहीं निजाम।
ईश्वर अल्ला हो गए, सबके सब बेकाम।।
160
आग लगाकर चाहते, आग बुझाना आप।
कहाँ श्राप को काटता, कहिये कोई श्राप।।