भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खद्योत दर्शन / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँद तो थक गया, गगन भी बादलों से ढक गया
बन तो बनैला है-अभी क्या ठिकाना कितनी दूर तक फैला है!

अन्धकार। घनसार।
अरे पर देखो तो वो पत्तियों में
जुगनू टिमक गया!

बैजनाथ कांगड़ा, जून, 1950