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खपरैल का मकान / स्वप्निल श्रीवास्तव

अच्छा था खपरैल का मकान
जहाँ छूट जाती थी कुछ न कुछ जगहें
वहाँ पक्षी बनाते थे घोंसले
सुबह जागने के लिये मुझे अलार्म
लगाने की ज़रूरत नही पड़ती
हम कलरव से जाग जाते थे
पक्का मकान बनने के बाद चीज़ें
बदल गईं
नही बची नीड़ बनाने की जगह
पक्षी बहुत दूर उड़ गए
सामने वाले पेड़ पर बैठे हुए कभी-कभी
उन्हें उन जगहों को निहारते हुए देखा है
जहाँ उन्होंने बनाए थे घर