भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खबरिया / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
पहले से मसहरी में डेरा जमाए
दस-बारह मच्छरों को
मैंने मार गिराया
भोजन के बाद बाहर
पिता जी अब भी टहल रहे थे
चौपाई आदि गुनगुनाते
ठहर-ठहर कर आवाज़ आती है
किचन से
खटर-पटर की
आज समाचार चैनलों ने
कोई धमाकेदार ख़बर नहीं सुनाई
इसलिए भी सूना-सूना सब कुछ
विषादमय लग रहा है कि जैसे
हमने दिमाग को
गिरवी रख दी हो
ख़बरियों के पास !