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खबर नहीं है / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
ख़बर नहीं है
फिर भी कितने
बढ़े-चढ़े अ़खबार
मुद्दों के एवज में
छपते ढेरों विज्ञापन
कोने में दुबका
आम आदमी
लेकर खालीपन
फिकर नहीं है
फिर भी कहते
हम हैं पालनहार
एक नेता का
एक पेपर अब
कैसा दौर चला
चौथा खम्भा भी
नांrवों से डगमग
डोल चला
प्रायोजित हैं
सब के सब
और जनता है लाचार
ख़बर नहीं है
फिर भी कितने
बढ़े-चढ़े अ़खबार