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खयाल उसका हरएक लम्हा मन में रहता है / अंजना संधीर

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ख़याल उसका हर एक लम्हा मन में रहता है
वो शमअ बनके मेरी अंजुमन में रहता है।

कभी दिमाग में रहता है ख़्वाब की मानिंद
कभी वो चाँद की सूरत , गगन में रहता है।

वो बह रहा है मेरे जिस्म में लहू बनकर
वो आग बनके मेरे तन-बदन में रहता है।

मैं तेरे पास हूँ, परदेस में हूँ,ख़ुश भी हूँ
मगर ख़याल तो हरदम वतन में रहता है।

ये बात सच है चमन से निकल के प्यार मिला
मगर वो फूल जो खिल कर चमन में रहता है।