भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा / राजेश रेड्डी
Kavita Kosh से
ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा
वहाँ भी रेत का अंबार होगा
ये सारे शहर में दहशत-सी क्यों हैं
यक़ीनन कल कोई त्योहार होगा
बदल जाएगी इस बच्चे की दुनिया
जब इसके सामने अख़बार होगा
उसे नाकामियाँ ख़ुद ढूँढ लेंगी
यहाँ जो साहिबे-किरदार होगा
समझ जाते हैं दरिया के मुसाफ़िर
जहाँ में हूँ वहाँ मँझधार होगा
वो निकला है फिर इक उम्मीद लेकर
वो फिर इक दर्द से दो-चार होगा
ज़माने को बदलने का इरादा
तू अब भी मान ले बेकार होगा