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ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा / राजेश रेड्डी

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ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा
वहाँ भी रेत का अंबार होगा

ये सारे शहर में दहशत-सी क्यों हैं
यक़ीनन कल कोई त्योहार होगा

बदल जाएगी इस बच्चे की दुनिया
जब इसके सामने अख़बार होगा

उसे नाकामियाँ ख़ुद ढूँढ लेंगी
यहाँ जो साहिबे-किरदार होगा

समझ जाते हैं दरिया के मुसाफ़िर
जहाँ में हूँ वहाँ मँझधार होगा

वो निकला है फिर इक उम्मीद लेकर
वो फिर इक दर्द से दो-चार होगा

ज़माने को बदलने का इरादा
तू अब भी मान ले बेकार होगा