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ख़ता क्या थी / प्रीति समकित सुराना
Kavita Kosh से
खता क्या थी सजा क्यूं दी हमें ये तो बताओगे,
गिला जो भी रहा हो और अब कितना रुलाओगे?
बड़ा कमजोर है ये दिल हमारा तुम समझ लेना
बिना समझे हमें ऐसे कहाँ तक आजमाओगे?
जहाँ में बेसबब यारा कभी कुछ भी नहीं होता
सबब कोई बताए बिन हमें कितना सताओगे?
तुम्हारा फैसला ही काश अंतिम फैसला होता,
लिखा तक़दीर में जो है उसे कैसे मिटाओगे?
रही है 'प्रीत' की फितरत हमेशा ही तड़पने की,
समझकर राह का रोड़ा हमें इक दिन हटाओगे...