भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़त्म इंसां की यूं ज़िन्दगानी हुई / मोहम्मद इरशाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ख़त्म इंसाँ की यूँ ज़िन्दगानी हुई
जैसे किस्सा या कोई कहानी हुई

वो समझ ना सका मेरे दिल की कही
उससे हर बात मेरी ज़वानी हुई

हमसे आख़िर ख़फा वो हुए किस लिए
कोई हमसे ही शायद नादानी हुई

उसने शिद्दत से देखा मेरे जख़्मों को
मेरी रग-रग में ख़ूँ की रवानी हुई

तुम भी ‘इरशाद’ ख़ुद के लिए जीत हो
जीते हो तो ये क्या ज़िन्दगानी हुई