भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़त्म हुई बात / अनिरुद्ध नीरव
Kavita Kosh से
एक खड़ी पाई
के आगे
ख़त्म हुई बात
कहने को था
बहुत-कुछ मगर
हो न सके
भाषा के बाजीगर
सिर्फ़ जगहँसाई
के आगे
ख़त्म हुई बात
हमने तो थी
सिर्फ़ साँस ली
और किया
अल्प था विराम
किन्तु उधर से
उँगली यूँ उठी
जैसे हो
वाक्य ही तमाम
खड़ी चौधराई
के आगे
ख़त्म हुई बात
सारे हक़
हर्फ़ों में
टँक गए
मौक़े पर ये
काले भेड़ हुए अन्ततः
लाठी के
बाड़े में
हँक गए
स्याह रौशनाई
के आगे
ख़त्म हुई बात ।