ख़त खुलासा कर न पाया आपका भेजा हुआ / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

ख़त खुलासा कर न पाया आपका भेजा हुआ।
मसअला उलझा दिया क्यों आपने सुलझा हुआ।

रख दिये ख़ुद तोड़कर अपने ही वादे आपने,
सख्त सदमें में है महफ़िल आपको ये क्या हुआ।

एक पल में रख गया दिल को हमारे चीरकर,
लफ्ज अदना-सा हवा की पुश्त पर उड़ता हुआ।

इस दही को दूध करना फिर से मुमकिन अब नहीं,
तीर कब लौटा कमानों से कहो निकला हुआ।

जख्म ये कोई रफूगर कर न पायेगा रफू़,
ताने देगा ज़िन्दगी भर आइना चिटखा हुआ।

तोड़ना ही दिल अगर था मुस्कुरा कर तोड़ते,
इश्क का एहसास मरता चैन से हँसता हुआ।

ख़त्म होती देख उम्मीदें गिरा ‘विश्वास’ कल,
कब तलक टिकता भला गुल शाख़ पर सूखा हुआ।

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