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ख़बर / शंख घोष / जयश्री पुरवार
Kavita Kosh से
अधखुले दरवाज़े से कमरे के भीतर घुसती जा रही ख़बर
खिड़की के कोने-कोने में टप-टप झरती जा रही ख़बर
इधर-उधर खिसकता जाता हूँ
पर मुझे ज़ोर से पकड़ रही है ख़बर
दीवार तोड़कर बाहर निकल आता हूँ
पूरी शक्ति से दौड़ता जाता हूँ
परन्तु मेरे सामने, पीछे, दाएँ-बाएँ है ख़बर,
खबरों का भँवर
औंधे मुँह गिर पड़ता हूँ पथ पर
मेरे ऊपर जमती रहती हैं ख़बरें ढेर बनकर
बन्द हो जाती है श्वास
मेरे मृत शरीर के ऊपर आनन्द से नाचती रहती है
नाचती ही रहती हैं
सिर्फ जीवन्त ख़बरों पर ख़बर ,
ख़बरों पर ख़बर ।
मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार