ख़मसा-2 / नज़ीर अकबराबादी
क्या इल्म उन्होंने सीख लिया जो बिन लिक्खे को बाँचे हैं।
और बात नहीं निकले मुँह से बिन होठ हिलाये जाँचे हैं।
दिल उनके तार सितारों के तन उनके तबल तमाचे हैं।
मुहचंग जबाँ दिल सारगी या घुंघरू हाथ कमाचे हैं।
है राग उन्हीं के रंग भरे और भाव उन्हीं के साँचे हैं।
जो बेगत बेसुर ताल हुए बिन ताल पखावज नाचे हैं।
कुल बाजे बजकर टूट गये आवाज लगी जब भर्राने।
और छम छम घुंघरू बंद हुए तब गत का अंत लगे पाने।
संगीत नहीं यह संगत है संतों का जिससे जी माने।
यह नाच कोई क्या पहिचाने इस नाच को नाचे सो जाने॥ है राग.
जब हाथ को धोया हाथों से और हाथ लगे फड़काने को।
और पांवों को खींचा पावों से तब पांव लगे गत पाने को।
जब आँख उठाली हँसने से और नैन लगे मटकाने को।
सब काछ कछे सब नाच नचे उस रसिया छैल रिझाने को॥ है राग.
जो आग जिगर में भड़की है उस शोले<ref>अग्निकण, भड़कीली आग</ref> की उजियाली है।
जो मुँह पर हुस्न की जर्दी है उस जर्दी की सब लाली है।
जिस गत पर उनका पांव पड़ा उस गत की चाल निराली है।
जिस मजलिस<ref>सभा</ref> में वह नाचे हैं वह मजलिस सब से खाली है॥ है राग.
सब घटता बढ़ता फेंक उधर और ध्यान इधर धर भरते हैं।
बिन तारों तार मिलाते हैं जब नृत्य निराला करते हैं।
बिन गहने झमक दिखाते हैं बिन जूड़े मन को हरते हैं।
बिन हाथों भाव बताते हैं बिन पाँव खड़े गत भरते हैं॥ है राग.
था जिनकी ख़ातिर नाच बना तब सूरत उनकी आय गई।
कहीं आप हुए कहीं नाच हुआ और तान कहीं भर्राय गई।
अब छैल छबीले सुन्दर की छबि नैन के अन्दर छाय गई।
एक सूरत लाल त्रिभंगी की और जोति में जोति समाय गई॥ है राग.
सब होश बदन का दूर हुआ जब गत पर आ मिरदंग बजे।
तन भंग हुआ दिल भंग हुआ सब आन गई बे आन सजे।
यह नाचा कौन ‘नज़ीर’ और यां किस लिये रचाया नाच अज़ी।
जब बूँद ही जा दरियाव पड़ी उस तान का आखिर निकला जी।
हैं राग उन्हीं के रंग भरे और भाव उन्हीं के सांचे हैं॥