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ख़यालों का संसार कितना हसीं है / डा. वीरेन्द्र कुमार शेखर
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ख़यालों का संसार कितना हसीं है,
यह जीवन का आधार कितना हसीं है।
बड़ों से असहमत, कहें मन की बातें,
ये बच्चों का इसरार कितना हसीं है।
उसूलों की ख़ातिर अलग राह पकड़ी,
वो रूठा हुआ यार कितना हसीं है।
जो कीं कोशिशें और अंडे से निकली,
ये तितली का आचार कितना हसीं है।
सृजन कार्य में रत रहा जो, जताता,
ये जीवन का इज़हार कितना हसीं है।
उन्हें क्या पड़ी जो उसूलों की सोचें,
शरीफ़ों का इनकार कितना हसीं है।
ज़मीं है ये बिस्तर, हवा है रज़ाई,
प्रबंधन ये सरकार कितना हसीं है।
नहीं ख़्वाब होता कोई इससे बेहतर,
हक़ीक़त का संसार कितना हसीं है।
-डॅा. वीरेन्द्र कुमार शेखर