ख़याल कुछ भी नहीं है दिल में / गिरधारी सिंह गहलोत
ख़याल कुछ भी नहीं है दिल में समझ न आये कि क्या कहूँ मैं
यही समझ लो लिखा जो अब तक ख़ुदा तुम्हारी रज़ा कहूँ मैं।
हसीं जवानी शबाब पर तो अज़ब लिखा है गज़ब लिखा है
हर एक हरकत पे दिलबरों की लिखा उसे तो अदा कहूँ मैं।
ग़रीब पर भी अमीर पर भी लिखा कभी तो ज़मीर पर भी
कभी कसीदे पढ़े ख़ुदा पर उन्हें तो दिल की सदा कहूँ मैं।
क़लम चला है कभी क़ज़ा पर कभी बनी ज़िंदगी सजा जब
बहा ख़ुशी ग़म जो लफ्ज़ में ढल हयात का तर्ज़ुमा कहूँ मैं|
ये कैसे मुमकिन नहीं लिखूंगा मुहब्बतों पर जवाँ दिलों पर
मिला जो अनमोल एक ज़ज्बा ख़ुदा से रहमत अता कहूँ मैं।
बहुत पुराना चलन लिखूं मैं नज़र लबों गेसुओं के ख़म पर
नक़ाब रुख पर है पल्लू सर पर इसे किसी की हया कहूँ मैं।
लिखा है मैंने भी चांदनी पर खिली सहर पर अँधेरी शब पर
कभी क़मर पर लिखा तो सूरज से कैसे ख़ुद को जुदा कहूँ मैं।
करी है कोशिश लिखूं हमेशा नए नए नित ख़याल लेकर
यही तमन्ना कि शायरी को कभी नहीं अलविदा कहूँ मैं।
कभी समझ क़ायनात फ़ानी लिखी जो मैंने यही कहानी
'तुरंत' बातें लिखी रुहानी इसे महज़ फ़लसफ़ा कहूँ मैं।