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ख़ला में ख़ाक के ज़र्रे फ़साद करते हैं / रवि सिन्हा

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ख़ला में ख़ाक के ज़र्रे फ़साद करते हैं
उथल-पुथल को जहाँ की निहाद<ref>स्वभाव (nature)</ref> करते हैं

सुकून जब है शबो-रोज़ कुछ लड़ाई हो
उठा-पटक में बसर की मुराद करते हैं

उबाल ख़ून में आता है आज भी जब-तब
जदीदियत<ref>आधुनिकता (modernity)</ref> से जदीदी जिहाद करते हैं

उन्हें अज़ीज़ हैं हम दोस्त हैं मिसाल हुए
मगर हमीं से वो गुप-चुप इनाद<ref>दुश्मनी (enmity)</ref> करते हैं

नज़र यहाँ से तो आए था साफ़ मुस्तकबिल<ref>भविष्य (future)</ref>
वो आन्धियों को बुला गर्दो-बाद<ref>धूल की आँधी (dust storm)</ref> करते हैं

खिंचा हुआ हूँ कई सम्त<ref>तरफ़ (direction)</ref> तो टिका हूँ मैं
मिरे वजूद के रेशे तज़ाद<ref>अन्तर्विरोध (contradiction)</ref> करते हैं

जफ़ा ही शर्त्त थी दुनिया में कामयाबी की
कभी-कभी तो मगर तुझको याद करते हैं

शब्दार्थ
<references/>