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ख़लिश से गुज़रते रहे जो / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
ख़लिश से उमर भर गुज़रते जो आए
उन्हें अन्त वेले सुमन क्यों सजाए।।
सदा नफ़रतों के चुभे ख़ार जिनको,
उन्हें प्यार कर क्यों है खुद को रुलाए।।
इतना सजाओ न फूलों से मुझको
कली के नयन की नमी भीग जाए।।
न आँसू न आहें कभी राह मेरी
न मर्जी से अपनी कभी रोक पाए।।
सहारे बिना भी न उठा जनाजा,
सहारा दिया कल जिन्हें, वो उठाए।।
दिया मान अपमान जो भी ऐ देवी!
वही अंत में संग अपने ही जाए।।