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ख़ाक भी हो गई खला अब के / शीन काफ़ निज़ाम
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ख़ाक भी हो गई ख़ला अब के
जाने किस सम्त है हवा अब के
हो गया है खुद से सामना अब के
फासला और बढ़ गया अब के
वो जो इक मेरा दूसरा मैं था
छोड़ कर वो भी चल दिया अब के
गुम्बदे-गुमरही में आ पहुंचा
कैसा भूला हूं रास्ता अब के
पहले जंगल जुदाई के थे नसीब
ऐ खुदा ! तू ने क्या लिखा अब के
ये सफर किस तरह कटेगा ‘निजाम’
साथ अपने नही दुआ अब के