भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ामियाज़ा / ममता किरण
Kavita Kosh से
बहुत दिनों से
नहीं लिखी कोई कविता
नहीं गाया कोई गीत
नहीं सुखाए छत पर बाल
नहीं टाँका बालों में फूल
नहीं पहनी कलफ़ लगी साड़ी
नहीं देखी कोई फ़िल्म
नहीं देखी बाग़ों की बहार
नहीं देखा नदी का किनारा
नहीं सुना पक्षियों का कलरव
क्या महानगर में रहने का
भुगतना पड़ता है
ख़ामियाज़ा ?