भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ामोशी कह रही है कान में क्या / जॉन एलिया
Kavita Kosh से
ख़ामोशी कह रही है, कान में क्या
आ रहा है मेरे, गुमान में क्या
अब मुझे कोई, टोकता भी नहीं
यही होता है, खानदान में क्या
बोलते क्यों नहीं, मेरे हक़ में
आबले<ref>छाले</ref> पड़ गये, ज़बान में क्या
मेरी हर बात, बे-असर ही रही
नुक़्स है कुछ, मेरे बयान में क्या
वो मिले तो ये, पूछना है मुझे
अब भी हूँ मैं तेरी, अमान में क्या
शाम ही से, दुकान-ए-दीद है बंद
नहीं नुकसान तक, दुकान में क्या
यूं जो तकता है, आसमान को तू
कोई रहता है, आसमान में क्या
ये मुझे चैन, क्यूँ नहीं पड़ता
इक ही शख़्स था, जहान में क्या
शब्दार्थ
<references/>