ख़ामोश मन का समंदर / तिथि दानी ढोबले
कैसे कहूँ वो सब
जो मैंने सोचा था,
कि तुमने समझ लिया।
समझ लिया नापकर
मेरे ख़ामोश मन का समंदर
और उसके तल में छुपी
मेरी तूफानी चीख को।
समझ लिया तुमने और देख लिया
हवा में तैरती मेरी आत्मा के चमकीले सपनों को
समझ लिया प्यार भरी थपकी देकर
बेहिसाब काम के बोझ से
थक कर चूर हो लौटी
कामकाजी महिला के धम्म से
सोफ़े पर आ बैठने के एहसास को
कभी यूँ लगता है मुझे
कि,
दुनिया भर के विद्वान दिमागों को
तुमने कर लिया है क़ैद
एक साथ अपने दिमाग़ में
तो अगले पल आ जाती है मुझमें
वह बेलगाम नदी की धार
जो तोड़ देती है बाँध की दीवार
और मैं बहती चली जाती हूं
न जाने किस दिशा में
यह सोच कर
कि, कहीं तो होगी वह चट्टान
जो थामेगी मेरा वेग
और मैं
हो जाऊँगी तब्दील तालाब में।
कैसे कहूँ वो सब
जो मैंने सोचा
कि तुमने समझ लिया।
समझ लिया करके दावा
मेरी पीड़ा का मर्ज़ मेरे इलाज के लिए
कीं तुमने बहुत सी प्यारी, समझदारी की बातें
जली मेरे मन में ज्वाला विश्वास की,
जो मेरी दवा बन गई।
एक बार फिर मुँद गयीं मेरी आँखें
और ले गयीं मुझे
उस दुनिया में
जहाँ कोई नहीं देखना चाहता
मनमोहक रंगीनियों के पीछे
दुबके पड़े सच के तार
जहाँ कोई नहीं सुनना चाहता
ख़ुमारी से भरपूर
थिरकाने वाले संगीत के पीछे छिपा शोर
पर अचानक बड़े झटके से
खुलीं मेरी आँखें
क्योंकि तोड़ दी थीं तुमने
वो पंखुड़ियाँ बड़ी बेरहमी से
जो थीं कभी किसी बाग़ के
सबसे ख़ूबसूरत फूल की।
वजूद में थी जिसके विश्वास की ख़ुशबू।
फिर , कभी अनपेक्षित ढंग से
मेरी तनहाई में किसी सांप की तरह
फुफकारते और बेचैन बादल की तरह
बरसने को तैयार,
मिले मुझे कुछ अपने,
दिखा गए मुझे वह पत्थर
जिसकी मदद से भगवान श्रीराम ने
तैयार किया था
असंभव सा नज़र आने वाला वह पुल ।
मैंने समझ लिया था उनका इशारा
वो चाहते थे,
उन पत्थरों की मदद से
मैं बनाऊँ इक पुल
जो मेरे मन के ख़ामोश समंदर के पार
ले जाए मुझे एक अज्ञात द्वीप पर।
पुल बनाने की कोशिश में
बढ़ी थी मैं आगे
पर खींच लिया था मेरा पैर
उस तेज़ हवा ने
जो तुम्हारे शहर की ओर से आयी थी।
जिसमें थी कोई अज्ञात सम्मोहक ख़ुशबू
फिर भी बारम्बार कीं मैंने कोशिशें
वो पुल बनाने की
जिसमें ख़ाक हो गया क़तरा-क़तरा
मेरे शरीर के पसीने की आखिरी बूँद का।
इसलिए अब मैं बैठी हूँ
कड़ी धूप में
सूरज ने ले लिया है
मुझे अपने आग़ोश में
तो कैसे कहूँ अब
वो सब,
जो मैंने सोचा
कि तुमने समझ लिया
पर न जाने क्यों...
तुम ताक रहे हो मेरी राह
एक बार फिर आगे बढ़ के
फिर पीछे खिंच जाने की।