भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ारिज / राजेश शर्मा 'बेक़दरा'
Kavita Kosh से
परखने के पैमाने पर हर बार की तरह
वो मुझे लगातार परखती रही
भगवान जाने,
मुझमें क्या ढूंढने को जिद थी, उसकी
इसी क्रम में एक दिन उसने पूछ डाला
मुझसे मेरा पसंदीदा गाना इस पर मैने उसको बता दी
सूफ़ी सांग्स की एक लम्बी लिस्ट
ओल्ड फैशन बोलकर,
उसने हर बार की तरह कर डाला था,
इस बार भी खारिज,
असल मे खारिज होना
उतना संगीन अपराध नही
जितना संगीन होता हैं
रेशमी उम्मीदों का टुटना
उम्मीदों के टूटने की इस लंबी श्रखंला के साथ
मैं धीरे धीरे होता गया
उसके तथकथित प्रेम में ओल्ड फैशन्ड और खारिज