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ख़ाली ख़ाली रस्तों पे बे-कराँ उदासी है / सरवत ज़ोहरा

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ख़ाली ख़ाली रस्तों पे बे-कराँ उदासी है
जिस्म के तमाशे में रूह प्यासी प्यासी है

ख़्वाब और तमन्ना का क्या हिसाब रखना है
ख़्वाहिशें हैं सदियों की उम्र तो ज़रा सी है

राह ओ रस्म रखने के बाद हम ने जाना है
वो जो आश्‍नाई थी वो तो ना-शनासी है

हम किसी नए दिन का इंतिज़ार करते हैं
दिन पुराने सूरज का शाम बासी बासी है

देख कर तुम्हें कोई किस तरह सँभल पाए
सब हवास जागे हैं ऐसी बद-हवासी है

ज़ख्म के छुपाने को हम लिबास लाए थे
शहर भर का कहना है ये तो खूं-लिबासी है