ख़िरदमंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है / इक़बाल
ख़िरदमन्दों<ref>बुद्धिमान व्यक्तियों </ref>से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा<ref>आदि,प्रारम्भ </ref> क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा<ref>समापन, अंत </ref> क्या है
ख़ुदी<ref>आत्मसम्मान </ref> को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर<ref>भाग्य निर्माण</ref> से पहले
ख़ुदा बन्दे से ख़ुदपूछे बता तेरी रज़ा<ref>इच्छा </ref> क्या है
मुक़ामे-गुफ़्तगू<ref>इसमें हैरानी की क्या बात है</ref>क्या है अगर मैं कीमियागर<ref> Alchemist,सभी धातुओं को स्वर्ण में परिवर्तित करने की कला को जानने वाला </ref> हूँ
यही सोज़े-नफ़स<ref>साँसों की आग</ref> है, और मेरी कीमिया<ref> सभी धातुओं को स्वर्ण में परिवर्तित करने की कला </ref> क्या है
नज़र आईं मुझे तक़दीर की गहराइयाँ इसमें
न पूछ ऐ हमनशीं मुझसे वो चश्मे-सुर्मा-सा <ref>सुरमुई आँखों जैसा</ref> क्या है
नवा-ए-सुबह-गाही<ref>प्रात:कालीन संगीत ने</ref> ने जिगर ख़ूँ कर दिया मेरा
ख़ुदाया जिस ख़ता की यह सज़ा है वो ख़ता क्या है