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ख़िरद को ख़्वाब दिखाओ के कायनात चले / रवि सिन्हा

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ख़िरद<ref>बुद्धि (Reason)</ref> को ख़्वाब दिखाओ के कायनात चले
अदब जुनूँ को सिखाओ नई हयात<ref>जीवन (Life)</ref> चले

ग़मे-फ़िराक़<ref>वियोग का दुःख (grief of separation)</ref> के नग़्मों में कोइ हाज़िर था
ज़ुबाँ मुझे भी अता कर, तिरी भी बात चले

फ़लक<ref>आसमान (Sky)</ref> पे जिर्म<ref>पिण्ड (Body)</ref> की गर्दिश<ref>चक्कर लगाना (to revolve)</ref> मदारे-ज़ीस्त<ref>जीवन का आधार (Life’s foundation)</ref> सही
ज़मीं पे ज़ीस्त जहाँ में अदम-सबात<ref>बिना स्थिरता के (without permanence)</ref> चले

मुआशरे<ref> समाज, सभ्यता (Society, Civilization)</ref> से बना शख़्स है इसे देखो
अना<ref>आत्म, ख़ुदी (Self)</ref> वो लफ़्ज़ है जिस लफ़्ज़ में लुग़ात<ref>शब्दकोष</ref> चले

तु रौशनी का गुहर<ref>रत्न (Gem)</ref> है सदफ़<ref>सीपी (Seashell)</ref>-नशीं क्यूँ है
चलो निकल के जहाँ तक अन्धेरी रात चले

शब्दार्थ
<references/>