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ख़ुदा करे मेरी मंज़िल का ये इशारा हो / सिया सचदेव
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ख़ुदा करे मेरी मंज़िल का ये इशारा हो
यूं लग रहा है किसी ने मुझे पुकारा हो
नज़र जमाये हुवे हूँ भटक नहीं सकती
अँधेरी शब है,तुम्हीं रहनुमा सितारा हो
उलझती रहती हूँ तन्हाइयों से ख़ुद अपनी
तो कैसे साथ किसी का मुझे ग़वारा हो
सबक़ लिया है गुज़िश्ता ख़ताओं से अपनी
ख़्याल रखती हूँ धोखा न फिर दुबारा हो
मैं उसको देख के पत्थर की हो चुकी जैसे
वो मेरी आँख में ठहरा हुआ नज़ारा हो
कभी तो ख़त्म सराबों का हो सफर या रब
मैं मौज हूँ तो मेरा तू ही बस किनारा हो
मैं अपना राख सा जीवन टटोलती हूँ सिया
कहीं दबा कोई एहसास का शरारा हो