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ख़ुदा की याद दिलाते थे नज़अ में अहबाब / मोमिन
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ख़ुदा की याद दिलाते थे नज़अ1 में अहबाब2
हज़ार शुक्र कि उस दम वह बदगु़माँ3 न हुआ
मय न उतरी गले से जो उस बिन
मुझको यारों ने पारसा जाना
आहे-सहर5 हमारी फ़लक6 से फिरी न हो
कैसी हवा चली ये कि जी सनसना गया
किया तुमने क़त्ले-जहाँ इक नज़र में
किसी ने न देखा तमाशा किसी का
दिल में नासेह7 आये, क्या अपना ख़्याल
जा सके कब यार के मस्कन8 में हम
किए हैं तूल अमल ने तमाम काम ख़राब
हमेशा नज़्मे-जहाँ के हैं कार-बार मुझे
वह लाला-रुह-फ़ज़ा दे कहाँ तलक बोसे
कि जो है, काम है, यहाँ शौक़े-जाँ-फ़िशाँ9 के लिए
शब्दार्थ:
1. मृत्यु के समय साँस टूटना, 2. दोस्त, 3. भटका, 4. सदाचरण वाला, 5. सुबह का क्रंदन, 6. आकाश, 7. उपदेशक, 8. सराय, 9. कड़ी मेहनत की चाह