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ख़ुदा तू है कहाँ ये ज़िक्र ही सबकी / देवी नांगरानी
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ख़ुदा तू है कहाँ ये ज़िक्र ही सबकी ज़ुबाँ पर था
जमीं पर तू कहाँ मिलता हमें तू आसमां पर था
वफ़ा मेरी नज़र अंदाज़ कर दी उन दिवानों ने
मेरी ही नेकियों का ज़िक्र कल जिनकी जुबाँ पर था
भरोसा दोस्त से बढ़कर किया था मैंने दुश्मन पर
मेरा ईमान हर लम्हा मक़ामे-इम्तहां पर था
बड़ा ज़ालिम लुटेरा था वो जिसने नोचली इस्मत
मगर इलज़ाम बदकारी का आख़िर बेज़ुबाँ पर था
ये आँसू, दर्दो-ग़म, आहें सभी हैं मस्अले दिल के
मुहब्बत का ज़माना बोझ इक क़लबे-जवाँ पर था
गुज़ारी ज़िन्दगी बेहोश होकर मैंने दुनियाँ में
मेरा विश्वास सदियों से न जाने किस गुमाँ पर था
बहुत से आशियाने थे गुलिस्ताँ में, मगर ‘देवी’
सितम बर्क़े-तपां का सिर्फ मेरे आशियाँ पर था