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ख़ुदी को दान करके देखते हैं / मदन मोहन दानिश
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ख़ुदी को दान करके देखते हैं ।
सफ़र आसान करके देखते हैं ।
अभी तक फ़ायदे में उसको रक्खा,
ज़रा नुक़सान करके देखते हैं ।
परखना है खुद अपने आप को भी,
कोई एहसान करके देखते हैं ।
इधर माहौल कुछ अच्छा हुआ है,
कोई ऐलान करके देखते हैं ।
जिस उलझन को कभी बिसरा दिया था,
उसी का ध्यान करके देखते हैं ।
नज़र में रौनकें चुभने लगी हैं,
फ़ज़ा वीरान करके देखते हैं ।
मनाने से नहीं मानेगा दानिश,
उसे हैरान करके देखते हैं ।