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ख़ुद को औरों की तवज्जुह का तमाशा न करो / अब्दुल अहद ‘साज़’
Kavita Kosh से
ख़ुद को औरों की तवज्जुह<ref>ध्यान देना</ref> का तमाशा न करो
आइना देख लो, अहबाब<ref>दोस्तों</ref> से पूछा न करो
वह जिलाएंगे तुम्हें शर्त बस इतनी है कि तुम
सिर्फ जीते रहो, जीने की तमन्ना न करो
जाने कब कोई हवा आ के गिरा दे इन को
पंछियो ! टूटती शाख़ों पे बसेरा न करो
आगही<ref>ज्ञान</ref> बंद नहीं चंद कुतुब-ख़ानों<ref>पुस्तकालय</ref> में
राह चलते हुए लोगों से भी याराना करो
चारागर!<ref>चिकित्सक</ref> छोड़ भी दो अपने मरज़ पर हम को
तुम को अच्छा जो न करना है, तो अच्छा न करो
शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो
दर्द की दौलते-नायाब <ref>अमूल्य / मुश्किल से मिलने वाली दौलत</ref> को रुसवा न करो
शब्दार्थ
<references/>