ख़ुद को कहते हैं उसका शैदाई<ref>आशिक़</ref> ।
हमसे होगी न उसकी रुसवाई ।।
आह दिल से ज़बान की दूरी
बात आई गई गई आई ।
आसमां कितना छटपटाया था
क्या उसे डस गई थी तन्हाई ।
उसका अन्दाज़ था जुदागाना
यूँ हँसाया कि आँख भर आई ।
कोठरी दिल की तंग थी कितनी
याद भी उसमें तह-ब-तह आई ।
अब तमाशा ज़रूर होना था
हम तो ख़ुद बन गए तमाशाई ।
सारे आदिल<ref>इंसाफ़पसन्द</ref> थे सारे मुंसिफ़<ref>इंसाफ़ करने वाले</ref> थे
सोज़ की पर हुई न सुनवाई ।।
शब्दार्थ
<references/>